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व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> स्वयं का सामना

स्वयं का सामना

सरश्री

प्रकाशक : वाओ पब्लिशिंग प्राइवेट लिमिटेड प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8757
आईएसबीएन :9789380582399

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न्याय, स्वास्थ्य, खुशी और रिश्तों पर अनोखी समझ देने वाली अद्‌भुत खोज

Swayam Ka Samna

न्याय, स्वास्थ्य, खुशी और रिश्तों पर अनोखी समझ देने वाली अद्‌भुत खोज प्रस्तुत करती पुस्तक ‘स्वयं का सामना’ व्यक्तित्व विकास के लिए एक महत्त्वपूर्ण रचना है। इस पुस्तक में एक अनोखे ढंग से आत्मपरीक्षण तथा आत्मदर्शन करवाया गया है। हॅंसते-खेलते छोटे-छोटे कथानकों के माध्यम से इस सत्य को प्रकाश में लाया गया है कि किस तरह से दूसरों के प्रति की गई शिकायत की जड़ हमारे अंदर ही छिपी होती है। पुस्तक में भिन्न-भिन्न किरदारों द्वारा जीवन में होनेवाली उन सामान्य घटनाओं पर खोज करवाई गई है, जो आए दिन उन्हें दुःख देती रहती हैं।

इस पुस्तक की कहानी ‘हरक्युलिस’ नामक किरदार के आगे-पीछे घूमती नजर आती है। इसमें चित्रित किया गया है कि किस तरह एक साधारण समझ व सोच रखनेवाला इंसान, जीवन में घटनेवाली घटनाओं के माध्यम से अपनी खोज करके चेतना के उच्च स्तर पर पहुँचकर संपूर्ण समाज को बदल सकता है।

जैसे कि लेखक ने अपनी प्रस्तावना में उल्लेख किया है कि हर इंसान को भीतर से एक दिव्य आवाज के रूप में मार्गदर्शन मिलता रहता है। जिससे इंसान अनजान है, हरक्यूलिस उस दिव्य मार्गदर्शन का अनुसरण करके जीवन में आई परिस्थितियों के सही संदर्भ समझकर अपनी सभी वृत्तियों, संस्कारों से मुक्ति पाकर औरों के जीवन में परिवर्तन लाता है। यदि आप भी अपने भीतर की दिव्य आवाज को सुन नहीं पा रहे हैं और जीवन की इन समस्यों में अभी भी घिरे हुए हैं तो ‘स्वयं का सामना’ इसमें आपकी मदद कर सकती है।


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